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ना जाने कौन सी मनहूस घडी थी वो आयी
जब हो गयी मेरी यार से लड़ाई
गलती है किसकी ना जानू मै
एक दूजे के दिल में ठेस हमने है लगाई (१)
हर बार पलट कर उसका दीदार करता हूँ
उसके कुछ कहने का इंतज़ार करता हूँ
दिल चाहता है लग जाउ गले उसके
अपने गुस्से पे क्यों फिर ऐतबार करता हूँ (२)
वो भी है की आंखे बिछाये बैठे है
मिलने को हमसे हर काम भुलाये बैठे है
है कसक थोड़ी सी उनके भी सीने में
मगर अपनी ज़िद में चुप्पी लगाए बैठे है (३)
इश्क़ से ज्यादा दर्द इंतज़ार में है
आखिर इतना क्यों गुरूर हमारे प्यार में है
की है चाहत दोनों की, साथ हो जाए
अटके मगर दोनों एक ही मजधार में है (४)
मै हूँ नादां मुझे माफ़ कर दे
मेरे इश्क़ का तू इन्साफ कर दे
सुना दे एक बार अपनी आवाज़ वो प्यारी
इस गुरूर के कचरे को तू साफ़ कर दे (५)
ये न सोच की हाथ किसने था छुड़ाया
बड़ा होता है वो जिसने साथ निभाया
है क्या फ़र्क़ आखिर लोगो में और तुम में
क्यू अपनी दुनिया से करते हो पराया (६)
आंखे मेरी अब भर जाएंगी
ना कहा है ना कुछ कह पाएंगी
जिस समंदर में सिखने तैराकी थे आये
अब उसी में ज़िन्दगी समा जायेगी (७)
इंतज़ार का मेरे कल दिनी आखिरी होगा
इश्क़ तेरा मेरे जनाजे का सारथी होगा
होगा ये समंदर फिर एक बार बदनाम
बह जाएगा दिया अकेला ये बाती होगा (८)
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